आओ कदम बढ़ाएं,विहंग जल प्रबंधन की ओर
ग्रीष्म ऋतु यौवन अंगड़ाई,परिवेश उत्संग उष्ण धारा ।
सिहर रहे मूक जीव जंतु,
बस उनको अब मनुज सहारा ।
शुभ मंगल नव पहल संग ,
परिंडे स्थापना प्रयास पुरजोर ।
आओ कदम बढ़ाएं,विहंग जल प्रबंधन की ओर ।।
सनातन धर्म पय सेवा,
परम पुण्य अनूप काम ।
मानवता नित शीर्ष शोभा,
कर खग पानी इंतजाम ।
सहज सुलभ स्थान बिंदु,
शीतल छांव अंतर नीर ठोर ।
आओ कदम बढ़ाएं,विहंग जल प्रबंधन की ओर ।।
उच्च तापमान लू प्रहार,
दैनिक चर्या अस्त व्यस्त ।
बचाव ही उपाय मूल मंत्र,
भरी दोपहरी जीवन पस्त ।
सहम रहा संपूर्ण पंछी जग,
कर प्रतीक्षा अंबु आशा भोर ।
आओ कदम बढ़ाएं,विहंग जल प्रबंधन की ओर ।।
पक्षी मानव अंतर्संबंध अद्भुत,
घनिष्ठ मैत्री प्रेरणा पुंज उपमा ।
तृषा तृप्ति नैतिक कर्म धर्म ,
हिय प्रकृति संरक्षण भाव रमा ।
करबद्ध निवेदन जनमानस,
सक्रिय योगदान अप्रतिम सेवा छोर ।
आओ कदम बढ़ाएं,विहंग जल प्रबंधन की ओर ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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