राजनीतिक परिवर्तन की आहट - वक्फ विधेयक
मनोज कुमार मिश्र
वक्फ बिल पास हो गया। लोकसभा और राज्य सभा मे बड़ी मजबूती से बिल पास हुआ। पुराने वक्फ बिल की धारा 40 को हटा दिया गया जो वक्फ बोर्ड को असीमित और कानूनी विवेचना से परे रहने का अधिकार देता था। जहां लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 288 मत मिले वही विपक्ष में 232 और राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 मत तो विपक्ष में 95 मत मिले। दोनों सदनों में 16 -16 घंटे तक बहस हुई। सबने अपने विचार रखे। विपक्षी नेता जिस विषय पर बोलना है उसके अलावा सब कुछ बोले पर यह नहीं बताया कि इस बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष सदन से ही नदारद हो गए और वोट के समय वापस आये। प्रियंका गांधी कुछ नहीं बोलीं, न ही सोनिया गांधी ने कोई बात रखी। दरअसल सोनिया, प्रियंका, राहुल सभी दिल से या शायद धर्म से भी ईसाई हैं जनता को दिखाने के लिए हिन्दू बनकर रहते हैं। अब इनके लिए सांप छछूंदर की स्थिति है। मुसलमानों को वे छोड़ नहीं सकते और ईसाइयों से उनकी स्वभाविक हमदर्दी है। इस वक़्फ़ बिल ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को बुरी तरह उजागर कर के रख दिया। अब वायनाड में इस परिवार की जमींदारी खत्म हो गयी लगती है।
इस बिल ने मुसलमानों के बीच के जाति विभेद को भी सबके समक्ष ला दिया। जहां अशराफ यानी उच्च मुसलमान इस बिल के विरोध में जमीन आसमान एक कर रहे थे वहीं अजलाफ़ यानी पिछड़े पसमांदा मुसलमानों ने इसका व्यापक स्वागत किया है। मीडिया, राजनेताओं और लेफ्ट लिबेराल्स की अभी तक की मेहनत से बनाई धारणा कि मुसलमान में जाति नहीं होती भरभराकर ढह गई। वक्फ के नाम पर जमीनों को आने पौने भाव मे खरीदना या किराये पर देना या लेना अब पैसे वाले मुसलमानों के लिए आसान न होगा। यहां तक सत्य उजागर हुआ कि एक पूरा मॉल मात्र 15 हजार के किराए पर दिया गया है। ओवैसी जैसे नेताओं ने वक्फ की 3000 करोड़ मूल्य की संपत्ति अपने कब्जे में कर रखी है। विपक्ष से अखिलेश यादव जब बोलने के लिए खड़े हुए यो बीजेपी के अध्यक्ष के चुनाव की बात करने लगे। सत्ता पक्ष ने विपक्ष से बार बार यह पूछा कि आखिर वे इन जमीनों का मुस्लिम गरीबों के उपयोग की मंशा से लाये बिल का क्यों विरोध कर रहे हैं तो उनके पास उत्तर नहीं था। एक मुस्लिम सांसद ने तो यहां तक कह दिया कि मुसलमान इस कानून को स्वीकार नहीं करेगा जिस पर गृह मंत्री ने स्पष्ट कर दिया को संसद के द्वारा बना यह कानून सभी पर लागू होगा।
वक्फ बोर्ड की मूल संरचना में बदलाव से इसमें न्यायविद और गैर मुस्लिमों के आने का रास्ता भी खुल गया। जिलाधिकारी जो जिले के राजस्व के लिए जबाब देह होता है इसलिए कलेक्टर कहलाता है अब इस विशुद्ध जमीनी मालकियत पर फैसला ले सकेगा। इस बिल के पास होने पर यह मिथक भी ध्वस्त हो गया कि जो दल मुस्लिम नेताओं के अनुरूप कार्य नहीं करेगा वह चुनाव में स्वीकार्य नहीं होगा। इसी मिथक के दम पर विपक्षी दल कहते थे कि यह विधेयक पास नहीं होगा क्योंकि जनता दल यूनाइटेड और चंद्र बाबू नायडू इसको कतई अपना समर्थन नहीं देंगे और सरकार के गिरने की संभावना बलवती है। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बिल आसानी से पास हो गया। देश मे जबसे भाजपा की सरकार आयी है तब से ही मुस्लिम मतों के डर का तिलस्म टूट रहा है। भाजपा ने भी देख लिया है कि उसे तो मुस्लिम।मत मिलते नहीं तो जो भी सुधार वे मुस्लिम कानूनों में कर सकते हैं कर देते हैं। इसी के तहत तीन तलाक़ हटा, धारा 370 हटा, CAA लागू हुआ अब वक्फ बिल भी कानून बन गया। यह भारतीय राजनीति में एक सुखद परिवर्तन है।
- मनोज कुमार मिश्र
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