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कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में

कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में

सनातन धर्म संस्कृति अंतर,
भोजन सदृश दैविक अनुष्ठान ।
प्रदत्त आरोग्य खुशियां निर्झर,
तन मन संचलन शक्ति विधान ।
भोजन हर मनुज नैतिक अधिकार,
कामना क्षुधा तृप्त खुशहाली में ।
कभी भी, जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
विवाह अन्य सामूहिक भोज पट,
साक्षात दर्शन भोजन अपमान ।
आवश्यकता परे भोजन रख,
जूठा छोड़ना अनैतिक आह्वान ।
अथाह सामग्री व्यर्थता कारण,
भूखमरी स्थिति बदहाली में ।
कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
पुनीत काज खाद्य सामग्री बचत,
भूखमरी निवारण अहम कदम ।
जनमानस करबद्ध निवेदन आग्रह,
संकल्प अन्न सदुपयोग रिदम ।
अद्य सर्वजन जठराग्नि तृप्ति,
आहार अनादर अंकुश रखवाली में
कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
निज भूख मांग अनुरूप,
भोज्य सामग्री ग्रहण प्रयास ।
तज परस्पर प्रदर्शन भाव,
हर कौर संग अनुभूत उल्लास ।
भोजन सम्मान आराधना सम,
अतुल्य कड़ी मानवता लाली में ।
कभी भी, जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
कुमार महेंद्र

(स्वरचित मौलिक रचना)
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