कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में
सनातन धर्म संस्कृति अंतर,भोजन सदृश दैविक अनुष्ठान ।
प्रदत्त आरोग्य खुशियां निर्झर,
तन मन संचलन शक्ति विधान ।
भोजन हर मनुज नैतिक अधिकार,
कामना क्षुधा तृप्त खुशहाली में ।
कभी भी, जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
विवाह अन्य सामूहिक भोज पट,
साक्षात दर्शन भोजन अपमान ।
आवश्यकता परे भोजन रख,
जूठा छोड़ना अनैतिक आह्वान ।
अथाह सामग्री व्यर्थता कारण,
भूखमरी स्थिति बदहाली में ।
कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
पुनीत काज खाद्य सामग्री बचत,
भूखमरी निवारण अहम कदम ।
जनमानस करबद्ध निवेदन आग्रह,
संकल्प अन्न सदुपयोग रिदम ।
अद्य सर्वजन जठराग्नि तृप्ति,
आहार अनादर अंकुश रखवाली में
कभी भी,जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
निज भूख मांग अनुरूप,
भोज्य सामग्री ग्रहण प्रयास ।
तज परस्पर प्रदर्शन भाव,
हर कौर संग अनुभूत उल्लास ।
भोजन सम्मान आराधना सम,
अतुल्य कड़ी मानवता लाली में ।
कभी भी, जूठन ना छोड़ें थाली में ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com