परशुराम जी महर्षि
विष्णु का अवतार हुए शिव का परशु पाया था।ब्राह्मण कुल जन्म लिया परशुराम कहलाया था।
विश्वामित्र के शिष्य त्यागी तपस्वी महर्षि ज्ञानी।
शास्त्र विद्या पारंगत विप्र हितेषी ऋषि महादानी।
मात पिता परम भक्त सहस्त्रबाहु का नाश किया।
इक्कीस बार वसुधा से क्षत्रियों का विनाश किया।
भीष्म द्रोण कर्ण से शिष्य अस्त्र शस्त्र ज्ञान दिया।
तोड़ा धनुष श्रीरामचंद्र ने ईश्वर को पहचान लिया।
अश्वमेध महायज्ञ कर सप्त दीप धरा दे दी दान।
अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए तपस्या को किया प्रस्थान।
दुष्टों का दलन कर देते साधु संतों के हितकारी।
विप्र कुल महा शिरोमणि तत्व ज्ञाता परशुधारी।
ओज भरा भाल दिव्य हाथो में धनुष तुणीर धारे।
सनातन धर्म के रक्षक परशुराम परम पूज्य हमारे।
करते प्रणाम शत-शत शक्ति पुंज दिव्य पुरुष को।
तेजस्वी है त्रिकालदर्शी तपोबल प्रतापी पुण्य को।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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