"बीज सुरक्षित रह जाए"
सुशील कुमार मिश्र
बीज भी बच जाये कलियुग में तो समझो बचा बहुत कुछ है।गोपुच्छ सदृश मोटी शिखा बहुत ही कम दिख पाता है।
पतली शिखा भी माथे पर दिख जाए यही बहुत कुछ है।
सबके गोत्र तो होते ही हैं प्रवर भी सबके होते हैं।
प्रवर के नाम बतला दें मुश्किल गोत्र बताएं बहुत कुछ है।
सबके वेद सुनिश्चित हैं उपवेद भी सबके सुनिश्चित हैं।
ज्ञान हो वेदों उपवेदों का सबको ये तो असंभव है।
नाम भी अपने वेद का कोई बता दे यही बहुत कुछ है।
सब वेदों के उपनिषद व अरण्यक हुआ भी करते हैं।
इन सब बस नाम भी सब कह पाएं लगता कठिन ही है।
श्रौत्र और गृहसूत्र सभी के शास्त्रों में तो वर्णित है।
एक सुत्र का नाम याद रख लें तो समझो बहुत कुछ है।
चूड़ाकरण उपनयन आदि संस्कार अभी भी होते हैं।
वेदारंभ समावर्तन संस्कार भी तो होते ही हैं।
चूड़ाकरण के जगह चूड़ा का हरण कर दिया जाता है।
और तो और बिना मुंडन उपनयन कर दिया जाता है ।
कुछ ही दिनों के बाद जनेऊ ठाकुर जी ही पहनते हैं।
संध्या तक की शिक्षा भी कहां उपवीती को मिलता है।
तीन काल की बात दूर एक काल सभी नहीं करता है।
सूर्य को अर्घ्य और गायत्री जप करले समझो य बहुत कुछ है।
इस कलियुग में बीज सुरक्षित रहे तो समझो बहुत कुछ है।
खानापूर्ति ही होता है अब इन सारे संस्कारों का
सभी ललाट हो तिलक सुशोभित ये कह पाना कठिन ही है।
लोकेट ब्रासलेट भार नहीं पर माला सुत्र तो भारी है।
अर्घ्य आचमनी आसनादि संध्या के पात्र भी भारी हैं।
ब्रह्ममुहुर्त में जगने की परिपाटी अब तो खत्म हुई।
हो मध्याह्न की संध्या भी निश्चित कहना ये असंभव है।
कुलगुरु कुलदेवी व कुल की परम्परा भी विकृत है।
फिर भी बीज बचा रह जाए तो समझो कि बहुत कुछ है।
ब्रह्मचर्य जैसा कोई आश्रम होता ही नहीं अब तो है।
वानप्रस्थ संन्यास भी आश्रम पहले जैसा अब नहीं है।
एक गृहस्थ ही आश्रम ही है वो भी विकृत रुप में ही।
वो भी बचा यदि रह जाए तो भी समझो बहुत कुछ है।
स्वरचित रचना - सुशील कुमार मिश्र
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