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मतलबी संतान

मतलबी संतान

कलयुग का प्रभाव आज सर्वत्र दिख रहा है,
मां - बाप को त्याग बच्चा खुश दिख रहा है।
भूल कर मां - बाप के निःस्वार्थ लाड़ प्यार को,
बच्चे उन्हें ही तरसा रहे हैं प्यार के दो बोल को।
तिल - तिल जलकर जिन्होंने तुझे पाला था,
तू उन्हें क्यों तड़पा रहा जिन्होंने तुझे संभाला था।
खुद भूखा रहकर भी तुझे निवाला खिलाया था,
रात-रात भर जाग तुझे चैन की नींद सुलाया था।
अपने सपने को त्याग हर खुशियां तुझे दिलाई थी,
रूखी सूखी खाकर भी दूध मलाई तुझे खिलाई थी ।
बिस्तर पर पड़े मां - बाप पर तनिक तुझे दया ना आई,
अपने स्वार्थ पूर्ति की खातिर इन पर तुझे तरस ना आई ।
निष्ठुरता की सारी हदें पार कर तूने ममता को ठुकराया है,
सारे संस्कारों को भूलकर तूने कुसंस्कारों को अपनाया है।
तेरी इस करनी का फल आज नहीं तो कल मिल जाएगा,
तेरे अपने बच्चे ही कल अपने जीवन से तुझे निकालेगा।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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