विधवा का साया
विधवा के साया का परिणाम देखा है,
अच्छे खासे लोगों को बर्बाद देखा है।
पड़ी जिस पर भी उसकी काली छाया,
बर्बाद हुआ जीवन मिटा कंचन काया।
अपने माया जाल में वह जिसे फंसाती,
हंसता खेलता जीवन को नरक बनाती।
अपनी कुटिल मुस्कान को बिखेर सदैव,
भोले भाले इंसान को वो मूर्ख बनाती।
अपनी हवस मिटाने की खातिर ही,
सज्जन इंसान को वह निशाना बनाती।
अपनी इज्जत की तो उसे परवाह नहीं,
दूसरों की इज्जत को वह नीलाम कराती।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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