सुप्रीम का मान किया, सिर पर चढ़ गये,
खुदा होने का गुमां, नये मानक गढ़ गये।देव कृपा- भस्म करने का अधिकार मिला,
भस्मासुर! देव को ही, भस्म करने बढ़ गये।
समझे नहीं शक्ति कितनी, दाता के पास,
जगत नियन्ता, सामर्थ्य कितनी उसके पास।
खामोश रह देखता रहा, पाप की पराकाष्ठा,
पाप घड़ा फोड़ने की, शक्ति नियंता के पास।
स्वयंभू बनने की चाहत, दुष्टों से मिल गये,
सत्ता का मौन कुछ क्षण, चेहरे यूँ खिल गये।
जैसे किसी बिल्ली को ख्वाब में चूहा मिला,
देखकर मालिक को सम्मुख, दिल हिल गये।
बस अभी तो आँख खोली, नींद में भी कुछ अभी,
जागती है जब भी जनता, सुर बदलते हैं तभी।
होश में आ वक्त की नज़ाकत समझो, देश पहले,
खेलते क़ानून से, फँस गये तो बच न पाओगे कभी।
तैराक को ही दरिया में, सदा डूबते देखा गया,
शिकारी को ही यहाँ, शिकार होते देखा गया।
सँभल कर जो चले, नियमों का पालन किया,
तनाव मुक्त जीवन, सम्मान पाते देखा गया।
क्या बची औक़ात, कभी तन्हाई में सोचना,
इज़्ज़त बिना धन का महत्व, आराम से सोचना।
धन तो बहुत वैश्या पर, साथ कोई बैठाता नही,
क्या करोगे धन दौलत का, तन्हा रहकर सोचना।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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