फन अभी कुचलना होगा
जातिवादी जहर लाए फन अभी कुचलना होगा।आंख दिखाए विषैले फौलादी बन मसलना होगा।
कंठी माला संग हाथों में शमशीरें भी रखना होगा।
शौर्य पराक्रम वीरता से रण में कदम रखना होगा।
विषधर बैठे डसने को जो जहर उगलते माटी में।
अमन चैन शांति के दुश्मन जान लूट रहे घाटी में।
आतंकवाद की आग जलाते खून की होली खेले।
मार कुंडली अजगर बैठे भारी गुरु भरकम चेले।
आतंकी सर्प मिटाने तरकश तीर ले चलना होगा।
धरा का काल बने फन को अभी कुचलना होगा।
जिनके दिल बारूदी है आतंक जिन्हें लुभाता है।
वीर वसुंधरा धरती पुत्रों को भी लड़ना आता है।
रणधीरों को बंदूकों बीच समर में अब बढ़ना होगा।
निर्दोषों की रक्षा को फन को अभी कुचलना होगा।
फूलों की केसर क्यारी है कुदरत का वरदान यहां।
कोई दुश्मन बांट रहा नित मौत का फरमान यहां।
दिल्ली के सिंहासन से सिंहों को हुंकार भरना होगा।
सुरक्षा शांति खातिर फन को अभी कुचलना होगा।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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