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संपर्क - संवाद: रिश्तों की संजीवनी

संपर्क - संवाद: रिश्तों की संजीवनी

हमारे जीवन में रिश्ते एक वृक्ष की भाँति होते हैं—जिनकी जड़ें विश्वास में गहराई तक फैली होती हैं और शाखाएँ स्नेह, सहयोग व समझ से हरी-भरी होती हैं। लेकिन जैसे किसी भी पेड़ को फलने-फूलने के लिए नियमित रूप से पानी और खाद की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही हमारे संबंधों को भी संपर्क और संवाद की जरूरत होती है।


" आप अपने रिश्तों-संबंधों में संपर्क एवं संवाद बनाए रखें — यह दोनों उस खाद और पानी की तरह है जो हमारे रिश्तों के नाज़ुक पौधे को मजबूत पेड़ बनने में सहायता करता है। इसके अभाव में, रिश्तों का सबसे मजबूत पेड़ भी सूख सकता है।"


यह वाक्य केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि जीवन की एक सच्चाई है। हम अक्सर अपने व्यस्त जीवन में रिश्तों को नज़रअंदाज़ कर बैठते हैं, यह सोचकर कि वे तो वैसे ही बने रहेंगे। परंतु, बिना संवाद के भावनाओं की दूरी बढ़ जाती है और बिना संपर्क के अपनेपन की डोर ढीली पड़ जाती है।


हर एक फोन कॉल, एक सादा सा संदेश, या सिर्फ हालचाल पूछने भर से हम अपने संबंधों में ऊर्जा भर सकते हैं। संवाद से केवल गलतफहमियाँ दूर नहीं होतीं, बल्कि एक-दूसरे के मन को समझने और अपनापन महसूस कराने का अवसर भी मिलता है।


समय निकालिए, अपनों से जुड़िए, यह आपके संबंधों को नवीन ऊर्जा प्रदान करता है। क्योंकि जब संवाद और संपर्क बना रहता है, तब रिश्तों का पौधा न केवल जीवित रहता है, बल्कि समय के साथ एक छायादार, मजबूत और फलदार वृक्ष बन जाता है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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