प्यार का बाजार
प्यार का बाजार है ,अपना ये विचार है ,
प्यार का व्यापार है ,
लेकिन मगजमार है ।
सुमधुर ये तकरार है ,
इसमें छिपा प्यार है ,
कहीं यह स्वीकार है ,
कहीं यही इन्कार है ।
प्यार के दुकानदार में ,
प्यार के खरीददार में ,
कहीं मकानमालिक में ,
तो कहीं किराएदार में ।
नोंक-झोंक तकरार है ,
किंतु बन जाते यार है ,
प्यार होता धारदार है ,
बंधुत्व का हथियार है ।
रिश्ते का ये आधार है ,
शिष्ट सभ्य व्यवहार है ,
नहीं लेता ये किनार है ,
सदा चलता मझधार है ।
मानव जीवन ये प्यार है ,
नहीं होता ये लाचार है ,
किसी को ये स्वीकार है ,
कोई करता इन्कार है ।
प्यार के इस बाजार में ,
पहले देख लो तख के ,
नजरों से पहचान लो ,
फिर देख तुम चख के ।
जीवन रूपी दुनिया में ,
कई रूप में ये प्यार है ,
कहीं है खुशी का सौदा ,
कहीं बरसता वार है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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