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शेरों,अब बाहर निकलो मांद से

शेरों,अब बाहर निकलो मांद से

अरण्य पटल रक्त रंजित,
निज संतति प्राण हरण ।
कुत्सित प्रहार आतंकवाद,
प्रश्न खड़ा जीवन मरण ।
जगा सुषुप्त शौर्य साहस,
न्याय स्वर अंतर्नाद से ।
शेरों,अब बाहर निकलो मांद से ।।


धर्म आस्था कारण प्रहार,
दानवता तांडव साक्षात।
क्रोध आक्रोश सीमा पार,
मानवता मूल प्रतिघात ।
भान अस्मिता आत्म सम्मान,
चैतन्य ज्वाला उर नांद से।
शेरों,अब बाहर निकलो मांद से ।।


धर्म आस्था संस्कृति विलापित,
सिसक रही जननी जन्म धरा ।
देख निर्दोष दुर्दांत अवसान,
सहम रहा कतरा कतरा।
हूंकार दुर्जन कठोर दंड हित,
चेतावनी उद्घोष सम्पूर्ण ब्रह्मांड से
शेरों,अब बाहर निकलो मांद से ।।


ध्यान ज्ञान गौरवशाली इतिहास,
रग रग उत्सर्ग तरंग अनंत ।
धर्म रक्षा वर्तमान परम ध्येय,
वीरता धीरता जोश अत्यंत ।
सर्वस्व न्यौछावर धर्म प्रतिष्ठा हेतु,
प्रण मुक्ति आतंकी जघन्य कांड से ।
शेरों,अब बाहर निकलो मांद से ।।


कुमार महेंद्र


(स्वरचित मौलिक रचना)


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