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राम बसे हैं मन में

राम बसे हैं मन में

अवध के राम हैं प्यारे,
जगत के धाम हैं न्यारे।
हृदय में राम बसते हैं,
सभी में राम दिखते हैं।


न कोई कष्ट सहता है
जो मन में राम भजता है।
जिसे वो प्रेम करते हैं
सदा ही स्नेह रखते हैं


दया और स्नेह को पाकर
बनो तुम प्रेम के सागर
लिए नवज्योत तुम आओ
जलाओ ज्ञान का दीपक


लगी अपनी जो धुन उनसे
बहाएं प्रेम का निर्झर
कहो सियाराम की हो जय।
मनन समभाव की हो जय।


अवध के राम हैं प्यारे,
जगत के धाम हैं न्यारे।
हृदय में राम बसते हैं,
सभी में राम दिखते हैं।

डॉ.अंकेश कुमार, 
पटना(बिहार)
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