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फूलों सा जीवन

फूलों सा जीवन

देशवासियों होश में आओ ,
रग रग तुम जोश दौड़ाओ ,
हिन्दू हो हिन्दूत्व दिखाओ ,
गद्दारों को भी धूल चटाओ ।
फूलों सा जीवन छिना जो ,
मारने में हिन्दू है गिना जो ,
ले रहा है ये चुस्की जो भी ,
कर्मानुसार मार्ग दिखाओ ।
कर दो अंग भंग तुम उनके ,
फूलों सा जीवन ये छिना है ,
करुणा बरसे उनपर नहीं ,
जिसने हिन्दू को ही गिना है।
सबक उन्हें मिलना चाहिए ,
जो आज चुस्की ले रहे हैं ,
भारत में रह पला पोषाकर ,
अपना नैया स्वयं खे रहे हैं ।
हर कतरा का हिसाब होगा ,
पत्थर से अब जवाब होगा ,
सह दिया है पीछे जिसने ,
उनका चेहरा बेनकाब होगा ।
अब बदला ये नवीन होगा ,
एक के बदले ये तीन होगा ,
दिया अंजाम बदतर जिसने ,
उससे भयंकर ये सीन होगा ।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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