लहूलुहान सिमाना होलो आबीजा गोमाम चलऽ।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
लहूलुहान सिमाना होलो आबीजा गोमाम चलऽ। जेवारी जेहादी बनलो करदऽ काम तमाम चलऽ।।
हुड़दंगी के आँधी उठलो छप्पर छानी उड़ रहलो।
जानी दुसमन बन अएलो हे मेटे नाम निसान चलऽ।।
ई तो जानल पहचानल हौ पोसल पेसल नाग निअन।
एकर मुह थूरे हूरेला लेके हर हर नाम चलऽ।।
घर घुसना बन आएल जखनी सक सूभा भेलै तखनी।
घर खोंखड़ कर देतो समझ हे आफत सरजाम घलऽ।।
सर सब राहे आग बुताबे भर गाँवे उठ हीं पड़तो ।
नाक से ऊपर पानी बढ़लो ओढ़ दुसहिआ घाम चलऽ।।
के अप्पन हौ के पाही के घर फुँकवा पुचकार रहल।
केतना सहबऽ अलगंठे अब हथिआबे परिनाम चलऽ।। 21
रामकृष्ण
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