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तुम कभी रुठा न करो

तुम कभी रुठा न करो

मंद मंद मुस्कुराता चेहरा महकते गुलाब सा।
मदमस्त हंसी अदाएं अंदाज खूब जनाब का।

मिलन का वादा कभी जानम यूं झूठा ना करो।
सारी दुनिया रूठ जाए तुम कभी रुठा ना करो।

नाजो नखरे सहेंगे संग संग हम मिलके रहेंगे।
दिल की बातें तुमको हम प्यार के नगमे कहेंगे।


तिरछी निगाहों से हमको तुम लूटा ना करो।
आओ मनाए तुमको तुम कभी रुठा ना करो।


सजना संवारना तेरा लहराते यूं केश काले।
कजरारे नैनो का जादू कर जाते हैं मतवाले।


आवाज देकर देखो जरा मुंह छोटा ना करो।
आओ घूमाएं तुमको तुम कभी रुठा ना करो।


मोरनी सी चाल तेरी छन छन बाजे पायलिया।
नथली के नखरे न्यारे गोरे गाल रिझाते पिया।


दिल के जुड़े हैं तार अक्सर तुम टूटा ना करो।
हंसकर बुलाओ हमको तुम कभी रुठा ना करो।


रमाकांत सोनी सुदर्शन


नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान

रचना स्वरचित व मौलिक है


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