मजदूर हूं
मजदूर हूं मेहनत करता लहू पसीना बहता हूं।दो रोटी की खातिर मैं परदेश कमाने जाता हूं।
धूप छांव परवाह नहीं सर्दी गर्मी सह सकता हूं।
परिवार का पेट भरने खुद भूखा रह सकता हूं।
शिल्प कला पारंगत हूं ऊंची मीनारें गढ़ लेता हूं।
खतरों से खेलता आया ऊंचे शिखर चढ़ लेता हूं।
श्रम की पूजा कर स्वाभिमान का धर्म निभाता।
मिले गर्म तवे की रोटी आंधी तूफां से टकराता।
संघर्षों में सदा रहा हूं मैं मेहनत का पुजारी हूं।
कल की चिंता नहीं करता ईश्वर का आभारी हूं।
दिनभर दौड़ धूप करता पलभर का आराम नहीं।
हुनर के दम पर जीता छल छद्मों का काम नहीं।
मेहनत मेरी रंग लाएगी खुशहाली घर आएगी।
कला का जादू मुंह बोले किस्मत संवर जाएगी।
नीले अंबर नीचे सोता मैं हर हाल में जी लेता हूं।
कड़वे मीठे घूंघट अक्सर हंस करके पी लेता हूं।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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