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पुरबैया के गुमसायल गरमी के अब न बात करऽ।

पुरबैया के गुमसायल गरमी के अब न बात करऽ।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
पुरबैया के गुमसायल गरमी के अब न बात करऽ।
तरबन्ना मैं मस्ती उतरल सेकर अब न बात करऽ।।


ढेर बदल गेलो समाज कथनी करनी सब ताखा पर
फाँड़ा भिड़ले जे गोहराबे से कर अब न बात करऽ।।


आँख मूनले चलल जा रहल जे अँखगर मनमौजी बन।
ओइसन माटी के लोंदा के अखनी तनी न बात करऽ।।


खाय फोकटिया डींग हाँकले असमानी सब बात करे।
कोढ़िआयल काया पोसबैया के तनिको न बात करऽ।।


लिखल पढ़ल बकलोल बताबे गाँजा के असली पहचान।
देह अपं‌न हौ सौख अपन हौ मन सौखी न बात करऽ‌।।


तैस बघारे में इनाम साइत केकरो मिललै होएत।
रस्ता से‌ जे बिलट गेल उ सनकी के न बात करऽ।।
रामकृष्ण
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