अक्षय तृतीया - यह दिन स्वयं सिद्ध दिन रहने के कारण शुभ कार्य के लिए पंचांग या मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है
दिव्य रश्मि पत्रिका के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा जी की कलम से |अक्षय तृतीया हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को ‘अक्षय’ कहा गया है, जिसका अर्थ होता है – जो कभी समाप्त न हो। इस दिन जो भी पुण्य कार्य, दान, व्रत या पूजा की जाती है, उसका फल अक्षय यानि अनंतकाल तक बना रहता है। यही कारण है कि इसे हिंदू धर्म में सबसे शुभ तिथि माना जाता है। अक्षय तृतीया को 'आखा तीज' के रूप में भी जाना जाता है।
अक्षय तृतीया को विवाह, नए व्यापार की शुरुआत, गृह प्रवेश, सोना खरीदने, खेती-बाड़ी, निवेश या किसी भी शुभ काम के लिए अत्यंत श्रेष्ठ दिन माना गया है। इस दिन पंचांग या मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, क्योंकि यह दिन स्वयं सिद्ध दिन माना जाता है।
सतयुग और त्रेता युग का आरंभ अक्षय तृतीया को हुआ था। भगवान विष्णु का नर-नारायण और ह्यग्रीव अवतार भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। 'चारधाम' के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री यमुनोत्री और श्री गंगोत्री के कपाट इसी दिन खुलते हैं। इस तिथि को ब्रह्मा और विष्णु की एकत्रित तरंगें उच्च देवताओं के लोक से पृथ्वी पर आती हैं। इस कारण पृथ्वी की सात्विकता बढ़ जाती है।
वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर में भी केवल अक्षय तृतीया को ही श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं। मान्यता के अनुसार आदि शंकराचार्य ने इसी दिन 'कनकधारा स्तोत्र' की रचना की थी। भगवान जगन्नाथ के रथों के बनने की तैयारी भी इस दिन से शुरू होती है।
भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण के अनुसार, अक्षय तृतीया में शुभ कार्य करने में श्रेष्ठ फल मिलता है। वैशाख मास भगवान विष्णु को अतिप्रिय है इसलिए भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की उपासना की जाती है।
अक्षय तृतीया को ही भगवान विष्णु ने अपने छठे अवतार परशुराम के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। परशुराम धर्म की रक्षा के लिए अधर्म का नाश करने वाले तपस्वी योद्धा थे। इसी दिन महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश से महाभारत लिखवाना शुरू किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बालसखा सुदामा का स्वागत इसी दिन द्वारका में किया था और उन्हें धन-समृद्धि से भर दिया था। जब द्रौपदी की चीर हरण होने की संकट आई थी, तो भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन उसकी रक्षा की थी। वनवास काल में पांडवों को सूर्य देव ने अक्षय पात्र प्रदान किया था, जिससे कभी भोजन समाप्त नहीं होता था। नारद पुराण के अनुसार, गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण भी अक्षय तृतीया को ही हुआ था। धन के देवता कुबेर को इसी दिन देवताओं का कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने एक वर्ष की तपस्या के बाद इसी दिन गन्ने के रस से पारायण किया था। इसलिए जैन धर्म में यह दिन 'इक्षु तृतीया' कहलाता है।
मान्यता है कि गुड़ और कर्पूर से युक्त जल दान करने वाले पुरुष ब्रह्मलोक में पूजित होते है। बुधवार और श्रवण से युक्त तृतीया में स्नान और उपवास करने से अनंत फल प्राप्त होता हैं। मदनरत्न के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठर से कहते हैं कि हे राजन इस तिथि को किए गए दान एवं हवन का क्षय नहीं होता है, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है। इसलिए इस तिथि को भगवान की कृपादृष्टि पाने और पितरों के लिए की गई विधियां, अक्षय- अविनाशी होती हैं।
अक्षय तृतीया के दिन किए गए धार्मिक कार्य और दान-पुण्य के कार्यों का फल कभी समाप्त नहीं होता है। इसलिए इस दिन कुछ विशेष कार्यों को करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कहा गया है कि जल से भरे घड़े, शरबत, छाता, पंखा, वस्त्र, जूते-चप्पल, अनाज, खांड, मौसमी फल और गायों के लिए चारा दान करना बहुत पुण्यकारी होता है।
अक्षय तृतीया के दिन पवित्र नदियों में स्नान कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करना चाहिए और घर के मंदिर को अच्छे से सजा कर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस दिन पितरों के लिए जल तर्पण और पिंडदान करने पर भी अक्षय फल मिलता है और पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन कोई अच्छा संकल्प लेना चाहिए, जैसे – नियमित पूजा करना, झूठ न बोलना, किसी की सहायता करना या संयमित जीवन जीना। इस दिन सोना खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। सोना को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है, जिससे घर में धनवृद्धि होती है।
सर्वविदित है कि अक्षय तृतीया के दिन केसर और हल्दी से माता लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियों में लाभ मिलता है।अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपडे में बांधकर पूजा स्थान में रखने से माता लक्ष्मी आकर्षित होती है। इस दिन घर में पूजा स्थान पर एकाक्षी नारियल स्थापित करने से भी माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
तिल सात्विकता का और जल शुद्ध भाव का प्रतीक है। इसलिए तिल और जल अर्पण करने से साधक का अहंकार नहीं बढता है। अक्षय तृतीया को पूर्वज पृथ्वी के निकट आने के कारण मानव को अधिक तकलीफ होने की संभावना बनी रहती है। मानव पर जो पूर्वजों का ऋण है उसको उतारने के लिए मानव को प्रयत्न करना चाहिए, इसलिए अक्षय तृतीया को पूर्वजों को सद्गति मिलने के लिए तिल तर्पण करना चाहिए
अक्षय तृतीया से पहले घर से कुछ अशुभ चीजों को हटाना देना जरूरी है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी घर में स्थायी रूप से वास करती हैं। झाड़ू को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। अगर घर में टूटी झाड़ू पड़ी है, तो उसे तुरंत हटा देना चाहिए। ऐसा नहीं करने से घर में दरिद्रता आती है और माता लक्ष्मी रूठ जाती हैं। घर में फटे पुराने या गंदे कपड़े नहीं रखना चाहिए। इन्हें या तो किसी जरूरतमंद को दे देना चाहिए या हटा देना चाहिए क्योंकि गंदे कपड़े नकारात्मक ऊर्जा लाती हैं। टूटी-फूटी वस्तुओं में जैसे बंद घड़ियां, टूटे बर्तन, खराब फर्नीचर या बंद पड़े इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हटा देना चाहिए या ठीक करवा लेना चाहिए, नहीं तो यह यह घर में अशांति और रुकावट पैदा करते हैं। घर के मंदिर या किसी कोने में देवी-देवताओं की खंडित या टूटी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए और यदि घर में है तो उन्हें सम्मानपूर्वक नदी या तालाब में विसर्जित कर देना चाहिए। क्योंकि खंडित मूर्तियां घर में नकारात्मक ऊर्जा लाती हैं।
अक्षय तृतीया केवल परंपरा ही नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक उत्थान और जीवन में स्थायी सुख-संपत्ति का द्वार भी है। अक्षय तृतीया हमें सिखाता है कि अच्छे कर्म, संयम, श्रद्धा और सेवा का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता है। इस दिन की गई छोटी-छोटी भक्ति और सेवा की भी गूंज अनंत काल तक बनी रहती है। अगर इस दिन सच्चे मन से पूजा, दान और सत्कर्म किया जाए तो न केवल घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति निश्चित होती है।
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