प्रकृति तेरी चित्रकारी अनूप
गगन आभा अद्भुत अनुपम,हिय पटल अनंत विस्तार ।
आत्मसात समग्र संज्ञा भाव,
सदा पितृ चरित्र अंगीकार ।
पुनीत पावन सानिध्य अंतर,
सूर्य चंद्र तारे मेघ छाया धूप ।
प्रकृति तेरी चित्रकारी अनूप ।।
धरा उपमा मातृ सदृश,
उत्संग प्रवाह अमिय धार ।
पेड़ पौधे जीव जंतु सह ,
संपूर्ण प्राणी जगत आधार ।
परस्पर संतुलन दिव्य प्रयास ,
अंतःकरण शोभा नेह कूप ।
प्रकृति तेरी चित्रकारी अनूप।।
नदी सागर झील पोखर ,
प्रगति आशा उत्साह दीप ।
पर्वत पठार छवि मोहक ,
जैव विविधता भाव संदीप ।
दुल्हन सी इठलाती वर्षा,
खिल खिलाती जन रंग रूप ।
प्रकृति तेरी चित्रकारी अनूप ।।
मरुस्थल सिद्ध योगी सम,
अनवरत जप तप साधना ।
प्रतिकूलता संग आनंद तरंग,
अल्प नीर महत्ता स्वीकारना ।
संरक्षण प्रयास नैतिक कर्तव्य,
सदा शुभ पहल मंगल कूच ।
प्रकृति तेरी चित्रकारी अनूप।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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