संतुष्टि: जीवन की सच्ची सफलता
हम अक्सर सफलता को जीवन का अंतिम लक्ष्य मान लेते हैं, जबकि संतुष्टि उससे कहीं अधिक गहराई लिए होती है। सफलता का मूल्यांकन समाज, लोग और परिस्थितियाँ करते हैं — जो बदलती रहती हैं। परंतु संतुष्टि, हमारे अंतर्मन की उपज होती है।
सफल जीवन दिखावे और बाहरी मानकों पर आधारित होता है — पद, पैसा, प्रसिद्धि। वहीं संतुष्ट जीवन आत्मशांति, संतुलन और आंतरिक प्रसन्नता का प्रतीक होता है। जब मन और मस्तिष्क दोनों यह स्वीकार करें कि "मुझे जो मिला है, वही मेरे लिए पर्याप्त और सार्थक है", तभी सच्चा आनंद मिलता है।
सफलता तात्कालिक हो सकती है, पर संतुष्टि दीर्घकालिक संतोष देती है। संतुष्टि हमें अहंकार से बचाती है और करुणा, विनम्रता तथा सहजता से जीवन जीना सिखाती है। इसलिए जीवन में केवल सफल बनने की नहीं, संतुष्ट रहने की आकांक्षा करें — क्योंकि अंततः वही जीवन को सार्थक बनाती है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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