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मर्यादित भाषा

मर्यादित भाषा

सोच समझ कर मुंह खोलो।
बोलना जरूरी है तो, मर्यादित भाषा बोलो।।
हर मुद्दे पर सबका जुबान अकड़ गया है।
अमर्यादित भाषा बोलने का चलन बढ़ गया है।।
हर मुद्दे पर समाज बंटा हुआ है।
एक मत होने का चलन घटा हुआ है।।
ऐसे में सब कोई अपनी काबिलियत दिखा रहा है।
छोटी छोटी बात को भी तिल का ताड़ बना रहा है।।
लोगों की तार्किकता सही दिशा में नहीं जा रही है।
इससे हर मुद्दे को और गंभीर बना रही है।
ऐसे में देश में तनाव अस्थिरता बढ़ता जा रहा है।
कोई भी बुद्धिजीवी समाधान नहीं खोज पा रहा है।।
कम बोलने वाले मूर्ख नहीं हैं।
आज की परिस्थिति में यह सबसे बड़ी बुद्धिमानी है।
अगर भाषा पर अंकुश नहीं लगा, तो भविष्य में,
देश को इसका खामियाजा उठानी है।।
गुजारिश है कि बोलने की आज़ादी को सही दिशा दें।
समाज में कटुता न लाकर, अपने लिए भी शाबाशी लें।।

जय प्रकाश कुंवर
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