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दुनियादारी

दुनियादारी

जब मन बोझिल हो जाता है।
बस एक आह साथ रह पाता है।।
दिल घुट घुट कर यों मरता है।
जीवन का लेखा जोखा करता है।।
क्या खोया है क्या पाया है।
इस जीवन को कैसे गंवाया है।।
सब कहते यह था फर्ज तेरा,
क्या,औरों का कोई कर्तव्य नहीं।
दलिलें ऐसी पेश की जाती हैं,
मानो तुम ही गलत हो,और वो हैं सही।।
ऐसी दुनियादारी को मेरा शत शत नमन।
ऐसे ही चलता जाए हर घर ,पर रहे अमन चयन।।
जय प्रकाश कुंवर
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