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तेरी ही महक

तेरी ही महक

प्रस्तावना
कुछ प्रेम की, कुछ अराधना और भक्ति की झलक है,
तुझ से, कोई भी रिश्ता बाँधू — हर रिश्ते तेरी ही महक है।


अंतर्यात्रा
तू कहीं दूर नहीं, मेरे ही भीतर बसी एक सदी है,
हर धड़कन की सरगम में, तेरी ही एक रागिनी छिपी है।


महक
तेरे आने की खबर जब दिल तक पहुँचती है,
तेरी खुशबू से हर कोना महकने लगता है।


अधूरी कथा
तेरे बिना ये जीवन जैसे कोई अधूरी सी कथा,
पर जब तू साथ हो, हर साँस बन जाती है एक प्रार्थना।


स्पर्श की अनुभूति
तेरे स्पर्श की अनुभूति, हवा के चलने में पाता हूँ,
कभी ओस की बूँदों में, कभी सूरज की किरणों में गुनगुनाता हूँ।


तन्हाई में संवाद
रात की तन्हाइयों में जब मन खुद से बातें करता है,
तेरा नाम ही तो है जो हर ख़ामोशी में शब्द भरता है।


विविध रूप
कभी तू प्रेमिका बन छू जाता है नयन की कोरों को,
कभी माँ बनकर सहेज लेता है टूटी हुई डोरों को।


आराधना का दीप
कभी वो आरती की लौ है, जो दिल के मंदिर में जलती है,
कभी वो शीतल छाँव है, जो आत्मा को शांति देती है।


निर्विकार प्रेम
तेरी आराधना में ही तो छुपा मेरा सच्चा प्रेम है,
जहाँ ना कोई प्रश्न बचे, ना कोई अधूरा क्षेम है।


अनंत सहारा
मैंने जब भी चाहा तुझसे जुड़ना, तूने राहें खोलीं,
हर मोड़ पर साथ दिया, हर ठोकर में बाँहें खोलीं।


परम साक्षात्कार
अब तुझसे दूर होने का कोई भी अर्थ नहीं बचता,
जब हर रूप, हर गंध, हर भाव — बस तुझमें ही सिमटता।


मौन की भाषा
कुछ कहूँ भी तो कैसे, शब्द भी कम पड़ जाते हैं,
तेरी महक में ढलते-ढलते, खुद को भूल जाते हैं।


ख़्याल
मेरी शामें तो तेरे ख्याल से महकने लगती है यूँ,
जैसे रात के बाद भी सुबह तेरी ही बात करती हो।


समापन
तेरी ही महक में बसी है मेरी सम्पूर्णता।
प्रेम एवं भक्ति का ये संगम, बस तुझसे ही उपजा है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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