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हमारी माटी हुई है लहू से लथपथ

हमारी माटी हुई है लहू से लथपथ

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हमारी माटी हुई है लहू से लथपथ
और तुम आतंकियों के गीत गाते हो।

जरा सोचो , तुम्हारा कोई मरा होता
शोक के उस दल दले बेसिर गड़ा होता
शान्त शीतल छाँह में दहके अगिन गोले
तुम्हारा भाई ्वहाँ शायद खड़ा होता।
दुश्मनी की तीव्रता ललकारती रहती
और तुम आतंकियों के गीत गाते हो।।

तुम्हे अपनी पीठ सत्ता धन अधिक प्यारे
देश धरती धर्म जनता सब लगेँ खारे
कहाँ ले जाकर रखोगे फालतू सामान
साँस चुकने भर तुम्हारे लगेंगे सारे।
कब रुकेगी राक्षसी विद्रूपता ऐसी
और तुम आतंकियों के गीत गाते हो।।

प्रश्न है इंसानियत से कहाँ छिप बैठी
जल रही घाटी निरंतर और चुप बैठी
क्रूरता के केघुओं को कुचलना होगा
सदाशयता भीत बनकर कहाँ‌ है ऐसी।
क्रूरता के लिए‌ बनना क्रूर ही पड़ता 
और तुम आतंकियों के गीत गाते हो।।

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