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कड़वी जुबान और माँ सरस्वती का वास

कड़वी जुबान और माँ सरस्वती का वास

सत्येन्द्र कुमार पाठक
एक छोटे से गाँव में वंशी और उसकी पत्नी धानो रहते थे। धानो एक शांत और सुशील बहू थी, जो अपने पति और ससुर की सेवा करती थी। वह घर के कामकाज में निपुण थी, लेकिन उसकी सास और ननद उसे पसंद नहीं करती थीं। वे हमेशा उसे ताने मारती थीं और उसकी हर बात में नुक्स निकालती थीं।
एक दिन, जब वंशी और उसके पिता खेत से लौटे, तो धानो ने उनके लिए खाना परोसा। दोनों ने बड़े प्रेम से भोजन किया और धानो के हाथों के बने खाने की तारीफ की। लेकिन जब धानो ने अपनी सास और ननद को खाना खाने का आग्रह किया, तो वे भड़क गईं। सास ने कहा, "हम इस कलमुंही के हाथ का बना खाना नहीं खाएंगे।" ननद ने भी अपनी माँ का समर्थन किया। धानो का दिल दुखी हो गया, लेकिन उसने विनम्रता से उन्हें मनाने की कोशिश की। सास ने अपनी बेटी से कहा, "लाओ बेटी, गेहूं का बोझा मेरे सिर पर रखने में मदद करो।" लेकिन जब धानो ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो सास ने उसकी बात नहीं मानी और गिर पड़ीं। उनके पैर में मोच आ गई और वे दर्द से कराहने लगीं।वंशी ने अपनी माँ को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी बात पर अड़ी रहीं। उन्होंने कहा, "तुम तो जोरू के गुलाम हो बेटा, हमेशा अपनी पत्नी का ही पक्ष लोगे।" वंशी के पिता ने अपनी पत्नी को डांटा, "गलती करो तुम और दोष दो हमारी सीधी-सादी बहू को? तुम्हें शर्म आनी चाहिए!" तभी, एक ज्ञानी योगी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने सारा मामला सुना और समझाया, "किसी भी महिला या पुरुष की काली जुबान होने से उसका श्राप फलित नहीं होता है। यह एक अंधविश्वास है। हर व्यक्ति के चौबीस घंटे में एक क्षण ऐसा आता है, जब उसकी जुबान पर माँ सरस्वती का वास होता है। उस क्षण में उसके मुँह से जो भी निकलता है, वह सत्य हो जाता है।" योगी जी ने आगे कहा, "दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि किसी भी महिला या पुरुष का दिल दुखा हुआ हो और उस दुख की अवस्था में उसके मुँह से कोई बात निकल जाए, तो वह भी फलित हो सकती है। इसलिए कभी भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए।"योगी जी की बातों का गाँव वालों पर गहरा असर हुआ। वंशी की सास को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी बहू को बेटी की तरह प्यार और सम्मान देना शुरू कर दिया। घर में फिर से शांति और प्रेम का वातावरण बन गया।इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि कड़वी जुबान और अंधविश्वास से दूर रहकर प्रेम और समझदारी से जीवन जीना चाहिए। हमें किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए और हमेशा सचेत रहना चाहिए कि हमारी बातों का क्या प्रभाव पड़ सकता है।
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