भारतवासी
ना अमीर हूँ, ना फकीर हूँ,ना साधु हूँ, ना संन्यासी हूँ।
बस इतना मेरा परिचय है कि,
मैं मूलतः भारतवासी हूँ।।
मानवता मेरा धर्म है,
परोपकार मेरा कर्म है।
पर पीड़ा से उद्विग्न हो जाता हूँ,
दिल जानता इसका मर्म है।।
मैं ना मूढ़ हूँ, ना अभिमानी हूँ,
बहुतों से कम ही ज्ञानी हूँ।
बस इतना ही मेरा परिचय है कि,
मैं एक पक्का सनातनी हूँ।।
हम पत्थर को भी पूजते हैं,
उसमें भी ईश्वर को खोजते हैं।
हम जब नहाते वक्त सिर पर जल देते हैं,
माँ कहकर अपनी पवित्र नदियों का, नाम लेते हैं।।
हम जब थाली से भोजन उठाते हैं,
मुंह में भोजन लेने से पहले,
माँ अन्नपूर्णा कह, सिर झुकाते हैं।।
रास्ता चलते समय,
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, जो भी सामने आता है,
मेरा मस्तक अपने आप झुक जाता है।।
हम फल तोड़ने के पहले,
पेड़ को प्रणाम करते हैं।
हम ऐसे ही बेकार नहीं,
भारतवासी और सनातन का दम भरते हैं।।
हमारी नयी पीढ़ी सनातन धर्म को समझे,
इस पर अमल और ध्यान करे।
मत भूले कि हम मूलत: भारतवासी हैं,
जिस पर सारा दूनिया अभिमान करे।।
जय प्रकाश कुंवर
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