गोरी के गोर बड़ा गोर लागेला ,
कारी अंधरिया अंजोर लागेला ।हमरा देखते गोरी मुस्कुराईल ,
पुआ होखे जईसे घी में छनाईल ।
नयना में बईठल चोर लागेला ,
आधी आधी रतिया भोर लागेला ।
कमर लचकावत ऑंख मटकावत ,
राह चलेली गोरी मुॅंह बिचकावत ।
चाल जईसे फॅंसल डोर लागेला ,
आपन पति अब अघोर लागेला ।
नारी ना हवे इ त हवे बेवफाई ,
एकरा से चेतके रहिह लोग भाई ।
बहरी निकलते सगरो शोर लागेला ,
बुढ़ापा उमिरिया थोर लागेला ।
देखे में जईसे गुड्डी चारबाज बा ,
काल्हे परसों अईसने आज बा ।
इश्क से भरल पोरे पोर लागेला ,
वनवा में नाचत जईसे मोर लागेला ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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