मस्त हवा ले हिलोरें
सोंधी सोंधी सुरभित होकर चलने लगी बयार।महक उठा चमन सारा गुलशन हुआ गुलजार।
मुस्कुराती हो पवन खिली अधरों पर मुस्कान।
झूम उठे भंवरे सारे जब कलियों ने छेड़ी तान।
मस्त हवा ले हिलोरें सुरभित हुई सारी पुरवाई।
मादकता ने रंग बिखेरा चेहरे पर रौनक आई।
रंग-बिरंगे पुष्प खिले कुदरत ने पसारे पांव।
बहारों ने श्रृंगार किया सज रहे ढाणी गांव।
चली हवाएं ठंडी ठंडी सारे तन मन को हर्षाती।
हंसती मुस्काती पून है तबीयत खुश कर जाती।
इठलाती बलखाती आई सन सन कर लहराई।
सरिता तीर पुरवाई मधुर फुहार बनकर छाई।
हसीं वादियो से बहती सागर को छूकर जाती।
अंतर्मन को दस्तक देकर मंद मंद मुस्कुराती।
बहारों का जादू कैसा मदहोश हुआ शायर भी।
बहारों का रुख देखो यूं उमड़ उठा सागर भी।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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