स्वयं पर नियंत्रण: शक्ति की सर्वोच्च अभिव्यक्ति
प्रिय मित्रों अक्सर हम शक्ति को बाह्य नियंत्रण से जोड़ते हैं—दूसरों को निर्देश देना, परिस्थितियों को अपनी इच्छा के अनुसार मोड़ना। लेकिन वास्तव में सबसे बड़ी शक्ति भीतर से आती है। जो व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण रखता है—अपने विचारों, भावनाओं, इच्छाओं और प्रतिक्रियाओं को संयमित कर पाता है—वह सच्चे अर्थों में शक्तिशाली होता है।
दूसरों को नियंत्रित करना एक क्षणिक विजय हो सकती है, पर स्वयं को साधना एक सतत तप है। क्रोध के समय शांति बनाए रखना, लालच के बीच संतोष का भाव रखना, अपमान के क्षण में विनम्रता बनाए रखना—ये गुण उस आंतरिक शक्ति के प्रतीक हैं जो किसी भी बाहरी प्रभाव से कहीं अधिक गहन और स्थायी होती है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।” पर यह यात्रा तभी संभव है जब हम अपने भीतर के भटकाव को साध सकें। आत्मनियंत्रण ही वह नींव है जिस पर चरित्र, सफलता और आत्मिक शांति की इमारत खड़ी होती है।
इसलिए, सच्चा विजेता वही है जो बाहर नहीं, भीतर जीतता है। जो स्वयं को जीत लेता है—वह संसार को भी जीत सकता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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