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कुछ करने का..

कुछ करने का..

बहुत कुछ करने का
हम संकल्प लेते है।
सोई हुई जिंदगी को
जगाने का प्रयास करते है।
जो हम समझ न पाये थे
उसे अब समझ रहे है।
और अपनी कि भूलों को
अब हम सुधार रहे है।।


हमारे निजी स्वार्थों ने
अलग लोगों से कर दिया।
मिली विरासत को भी
मिट्टी में हमने मिला दिया।
दिया कितना कुछ था
हमारे मात-पिता ने।
पर उनके संस्कारों को
जीवन में उतार नहीं पाये।।


बहुत पढ़ लिखकर भी हम
संसार को समझ नहीं पाये।
जो व्यवहारिक और स्नेह से
निरंतर चलता रहता है।
और एक दूसरे के रिश्तों से
समाज और देश बनता है।
जिसमें सभी को भूमिका
निभाना अपनी पड़ता है।।


भले ही हमारे पूर्वज
रहे हो अनपढ़ चाहे।
पर संसार को चलाने का
वो बहुत ही ज्ञान रखते थे।
इसलिए तो लाखों का
कारोबार भी करते थे।
और देश समाज में अपना
ऊँचा नाम भी रखते थे।।


जय जिनेंद्र


संजय जैन "बीना" मुंबई


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