रोज रोज मरते, मगर मरने से डरते हैं,
हसीं ख्वाब मेरे, क्यूँ संवरने से डरते हैं।उतरे नहीं नदी में, जो नहाने के वास्ते,
बीच नदी की भँवर, फँसने से डरते हैं।
नापते गहराई दरिया की, किनारे बैठकर,
मोती तलाशते समंदर में, किनारे बैठकर।
महफ़िल में अहिंसा पर उपदेश देने वाले,
पकडते मछलियाँ जाल, किनारे बैठकर।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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