जीवन एक पहेली
जीवन एक पहेली है ,हमने स्वयं ये झेली है ,
जीवन है जाल से बुना ,
सुख दुःख मैंने खेली है ।
जीवन तो कर्म खेल है ,
जैसे पटरी चली रेल है ,
जैसे सवारी तीव्रगामी ,
कोई बनी इनमें मेल है ।
जी जीवन एक पहेली है ,
कर्म भाग्य ही सहेली है ,
चलती है पटरी पे गाड़ी ,
चाल बहुत अलबेली है ।
जीवन यह क्या जीव न ,
या जीवन ये जी वन है ,
या जीवन व जीन बना है ,
या जीवन सृष्टि रण है ।
जीवन तो स्वयं पहेली ,
जीवन स्वयं शिकार है ,
जीवन स्वयं ही शिकारी ,
जीवन सृष्टि का प्यार है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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