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अनंत मौन की ओर

अनंत मौन की ओर

अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता,
शब्द थक गए हैं,
भावनाओं की नाव बहते-बहते
किनारे भूल चुकी है।


मैं सुनना चाहता हूँ —
एक समर्थ, सच्ची आवाज़
जो भीतर तक उतर जाए,
जो मेरी आत्मा की गहराइयों को
पहचाने बिना चौंके,
जो न हो सिर्फ़ शोर
बल्कि मौन की गूंज से जन्मी हो।


कहीं हो ऐसी आवाज़,
तो मुझे उसका मार्ग बता दो।
अन्यथा —


इससे पहले कि
मेरा हर कथन
अर्थहीन हवा में बिखर जाए,
हर मंथन
शब्दों की दीवार से टकराकर
टूट जाए —


मैं उस मौन की शरण लेना चाहता हूँ
जो प्रतीक्षा नहीं करता उत्तर की,
जो प्रश्नों से मुक्त है,
जो मृत्यु नहीं,
बल्कि अंतिम विश्रांति है।


जहाँ न संघर्ष हो,
न स्वीकार, न अस्वीकार —
बस एक व्यापक ठहराव,
जिसमें
मैं विलीन हो सकूँ,
अपनी समस्त अभिव्यक्तियों सहित।


क्योंकि जब कोई सुनता नहीं,
तो कहने का अर्थ शून्य हो जाता है।
और शून्य की यही पुकार
कभी-कभी
सबसे गहरी होती है।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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