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अघोषित आपातकाल बताते, जो सत्ता को गाली देते,
लोकतंत्र पर जब हमला, आपातकाल लगा था,
सिमट रहे परिवार, विराना लगता है,
दहेज़ क्या है ---
हम हों धनवान, कोई तो राह दिखाओ,
ग़ाँव ---एक दर्पण
सच को सच कहने से, हम क्यों डरते हैं
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
स्त्री मन सदा कुंवारा
जहाँ शब्द व्यर्थ हों, वहाँ मौन बोलता है
सोचना यह नहीं मुश्किल हम कहाँ जाएँ।
ऐ आसमाॅं तू ही बता‌ दे
कुदरत का करिश्मा
बारिश के मौसम में,नेह परवान चढ़ रहा
धर्मनिरपेक्षता का बेसुरा ढोल
मौसम ने..
बातों में चिंगारी ले कर सड़कों पर हैं चलते लोग।
मेरा भारत सबसे प्यारा
फूलों का रंग
दुसरों को रूला कर, कोई हंस नहीं सकता।
प्रणय से परिणय तक,हर कदम चमक दमक
नशामुक्ति दिवस
सब प्रारब्द्ध का खेल है।।
हिंद छवि अति मनभावन
बिहार में जरी है अमंगल राज, पत्रकार भी यहाँ नहीं है सुरक्षित :गिरीन्द्र मोहन मिश्र