जो जिये खुद के लिये, वह मरे समान हैं,
कुछ बहुओं को हमने देखा|
जाने कितने ठग लुटेरे, भेष बदलकर घूमते,
हिन्दू राष्ट्र
अब धर्म की घुट्टी पिलाना छोड़िए,
सत्ता और सियासत पर, जब ताला लगा मौन का हो,
छूटती हुई पतवार को फिर थाम ले,
सिमट गयी हैं माँ और अम्मा,
नारी का गुणगान करो, यह अच्छा है,
पड़ोसी देश
कैसे तेरा कर्ज चुकाऊॅं
प्यार होने लगा, तुम्हें देखकर
जिंदगी का राज
देर रात को जब कभी घर को आता हूँ,
मधुमालती
स्वीकार नहीं है..
हिन्दू सब कुछ सहता रहता, तो अच्छा है,
आज बहुत रोने का मन है
चौरसिया दिवस
मैं न सही हूँ,मैं न गलत हूँ।
तारीफ  उनकी  किए  जा रहे हैं।
काला धागा कई परेशानियों से बचाता है
समस्त चेतन भाव में स्थित हैं "राम"
हिमालय की तरह ऊँचा था आचार्य शिवपूजन सहाय का साहित्यिक व्यक्तित्व :-डा अनिल सुलभ
हनुमान जी का अशोक वाटिका में उत्पात